संदेश
"उफ्फ्फ ये शातिर सहनालायक लोग "
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"उफ्फ्फ! ये शातिर सहनालयक लोग" दिल में कुछ और जुबां में कुछ और उफ्फ्फ!ये शातिर सहनालायक लोग जाने कैसे अपनी फितरत बदल लेते हैं अदंर इनके विष और ज़बान से कैसे मीठे बोल लेते हैं उफ्फ्फ! ये शातिर सह नालायक लोग दूसरों को नीचा दिखाने के फिराक़ में ही इनके वक़्त गुजरते हैं इंसान होकर भी ये जाने कैसे? गिरगिट से भी तेज अपना रंग बदल लेते हैं उफ्फ्फ! ये शातिर सह नालायक लोग बुराई करते करते ही इनके वक़्त गुजर जाते हैं फालतू बातों की दुहाई देते देते ही जिंदगी कट जाते हैं दूसरों को नीचा गिराने के फिराक़ में खुद ही गिर जाते हैं उफ्फ्फ! ये शातिर सह नालायक लोग जाने क्या - क्या कर जाते हैं...... _ सुलेखा.
क्रोध
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"क्रोध, मनोविकार है..." क्रोध, एक मनोविकार है फिर भी हरेक शख़्स इसका शिकार है क्रोधी व्यक्ति जिस पर क्रोध करता है वह उसे भी व्यग्र कर देता है क्रोध कितने सृजन का नाश कर देता है वश में आकर इनके व्यक्ति सर्वस्व गंवा देता है निम्न से लेकर बड़े से बड़े भी राज्य,साम्राज्य का विनाश कर देता है बड़े बुजुर्ग भली -भांति ये जानते हैं इसलिए सदैव शान्ति का मार्ग ही चुनते हैं क्रोध के आग में जो जलते हैं वह खुद ही अपना सर्वनाश कर डालते हैं क्रोधातिरेक को सहना कायरता नहीं बुद्धिमानी है सीमारेखा में जीवन जीना ही जिंदगानी
कविताएँ " ढूँढने से भी नहीं मिलते अब
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क्या वक़्त था वो क्या जमाना था? आज से कई गुना अच्छा, तो गुजरा हुआ हमारा बचपन का जमाना था.... कंक्रीट की दीवारों में भावनाओं का सीलन नहीं होता खपरैल की छत की तरह हवेलियों में वो सुकून कहीं नहीं.... चूल्हे की आग में सिंकती थी रोटियां उसके स्वाद में लूटा दूं मैं सैकड़ों हीरे मोतियां माँ की हाथों में जो लज्जत है ओ दुनिया में कहीं नहीं.... सिलबट्टे से पिसी चटनी में हरी धनिये की महकती खूशबू है वो जमाने में कहीं नहीं.... भाई बहनों के संग झगड़ते थे, रोटियाँ की पपच्चियों के लिए वो प्यार, वो शरारत सारे जहाँ में कहीं नहीं..... कुंइयां की पानी जैसा मिनरल्स वाटर में नहीं रहा स्वाद आजकल लोगों के लहजों में वो मिठास कहीं नहीं.... ढूँढने से भी नहीं मिलते अब वो अपनापन और स्नेह बड़े हो जाने के बाद वो खुशियाँ मिलती कहीं नहीं...